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आर्थोपेडिक क्या है? - प्रणाली, डॉक्टर और इलाज | Orthopaedic in Hindi

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Medically Reviewed by Dr. Aman Priya Khanna
Written by Sangeeta Sharma, last updated on 7 January 2023| min read
आर्थोपेडिक क्या है? - प्रणाली, डॉक्टर और इलाज | Orthopaedic in Hindi

Quick Summary

  • ऑर्थोपेडिक एक मेडिकल फील्ड है जो हड्डियों, जोड़ों, मांसपेशियों और टेंडन से संबंधित बीमारियों का इलाज करता है।
  • ऑर्थोपेडिक डॉक्टर आर्थराइटिस, रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर, फ्रैक्चर, हड्डी में इंफेक्शन और कई अन्य प्रकार की समस्याओं का इलाज करते हैं।
  • ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास तब जाना चाहिए जब आपको हड्डियों, जोड़ों, मांसपेशियों या टेंडन में कोई समस्या हो।
बढ़ती उम्र के साथ हड्डियां और मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। कभी - कभी खेल कूद में खिलाड़ियों और छोटे बच्चों को भी हड्डी और मांसपेशी में चोट लग जाती है। ऐसे में फिजिशियन किसी ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास जाने की सलाह देता है। ऑर्थोपेडिक के अंतर्गत  कई रोगों जैसे आर्थराइटिस, रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर, फ्रैक्चर, हड्डी में इंफेक्शन और कई अन्य प्रकार की समस्याओं का इलाज होता है। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि ऑर्थोपेडिक क्या होता है, ऑर्थोपेडिक में किन रोगों का उपचार होता है और ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए।

आर्थोपेडिक क्या है

ऑर्थोपेडिक सर्जरी की वह शाखा है जिसमे मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम यानी हड्डी, जोड़ों, मांसपेशियों, लिगामेंट और टेंडन से जुड़ी समस्याओं का उपचार और सर्जरी किया जाता है। ऑर्थोपेडिक डॉक्टर  को ऑर्थोपेडिस्ट कहा जाता है जो सर्जरी और उपचार दोनो में विशेषज्ञ हो सकते हैं। 
 
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ऑर्थोपेडिक क्षेत्र में विकास

ऑर्थोपेडिक क्षेत्र में कुछ नई तकनीकों के कारण विकास देखने को मिले हैं जिनसे मरीज की सर्जरी और उपचार में सहजता हुई है। ऑर्थोपेडिक के क्षेत्र में बायोप्रिंटिंग का इस्तेमाल सटीक तरह से बोन ट्रांसप्लांट करने में किया जा सकता है। बायोप्रिंटिंग की तकनीक पर रिसर्च जारी है। इसी प्रकार रोबोटिक, ऑर्थोस्कोपिक, वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने ऑर्थोपेडिक सर्जरी को आसान बना दिया है। अमेरिकी ऑर्थोपेडिक सर्जन अकादमी ने हाल ही में ओस्टियोअर्थराइटिस के कारण घुटनों में होने वाले दर्द से राहत पाने के लिए लेजर थेरेपी इस्तेमाल करने के निर्देश दिए हैं।

ऑर्थोपेडिक में क्या उपचार होता है

ऑर्थोपेडिक डॉक्टर मुख्य रूप से इन चीजों का उपचार करते हैं: 
  1. हड्डी में चोट या फ्रैक्चर 
  2. मांसपेशियों में खिंचाव 
  3. जोड़ों का दर्द 
  4. कमर दर्द 
  5. आर्थराइटिस
  6. कार्पल ट्यूनल सिण्‍ड्रोम
  7. लिगामेंट और टेंडन में चोट 
  8. शरीर के अंगों में असमानता 
  9. हड्डी का कैंसर 
इन सब चीजों के अलावा कुछ डॉक्टर मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम के कुछ विशेष अंगों के विशेषज्ञ होते हैं जैसे रीढ़ की हड्डी, कूल्हे और घुटने, हाथ, कंधे और कोहनी, पैर और एड़ियां, खिलाड़ी को लगने वाली चोट या ट्रॉमा सर्जरी में विशेषज्ञता हासिल होती है।
 

ऑर्थोपेडिक उपचार के प्रकार

ऑर्थोपेडिक डॉक्टर अपने अनुभव के आधार पर  मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम में आई किसी भी दिक्कत का उपचार शुरू करते हैं। ऑर्थोपेडिक उपचार में सर्जिकल और नॉन सर्जिकल तरीके प्रयोग किए जाते हैं जो निम्नलिखित हैं: 

नॉन सर्जिकल ऑर्थोपेडिक उपचार

  1. एक्सरसाइज: ऑर्थोपेडिक डॉक्टर कुछ विशेष व्यायाम करने की सलाह दे सकता है जिसे करने से पॉजिटिव रिजल्ट्स देखने को मिलते हैं।  
  2. इमोबलाइजेशन: डॉक्टर आपके समस्या के अनुसार उस अंग को तानने या खींचने से मना कर सकते हैं जिससे वहां पर हुआ घाव तेजी से भर सके। 
  3. दवाईयां: सूजन और दर्द होने पर डॉक्टर कुछ दवाईयां जैसे कोर्टिकॉस्टेरॉइड और आईबुप्रोफेन लेने की सलाह दे सकते हैं। 
  4. जीवनशैली: मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम में आई चोट के अनुसार डॉक्टर कुछ शारीरिक व्यायाम करने को कहते हैं और सही डाइट लेने की सलाह देते हैं।   

सर्जिकल ऑर्थोपेडिक उपचार

  1. ज्वाइंट रिप्लेसमेंट: इस प्रक्रिया में ऑपरेशन की मदद से  जोड़ों के खराब हिस्सों को निकाल दिया जाता है और इसकी जगह आर्टिफिशियल हिस्सों को लगा दिया जाता है। घुटनों और कूल्हों का रिप्लेसमेंट आजकल आसानी से किया जाता है। 
  2. इंटरनल फिक्सेशन: जब शरीर के किसी भी जगह की हड्डियां टूट जाती हैं तो हड्डियों को रिकवर होने तक कुछ हार्डवेयर की चीजें जैसे रॉड, पिन और प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद स्थिर रखने के लिए ऊपर से प्लास्टर लगा दिया जाता है।  
  3. फ्यूजन: इस प्रक्रिया में बोन ग्राफ्ट यानी हड्डी के ऊतकों को ट्रांसप्लांट करके टूटे हुए हड्डियों में लगाया जाता है। इस प्रकार टूटी हुई हड्डियां आपस में जुड़ जाती हैं।  
  4. ओस्टियोटॉमी: इस प्रक्रिया में हड्डियों को जोड़ने या सही आकार में लाने के लिए हड्डी के कुछ हिस्से को काटा जाता है। ओस्टियोटोमी में हड्डियों को जोड़ने के लिए हड्डी के ऊतकों को जोड़ों के बीच डाला जाता है।   
  5. सॉफ्ट टिश्यू रिपेयर: इस सर्जिकल प्रक्रिया का इस्तेमाल गंभीर रूप से डैमेज हुए मांसपेशियों, लिगामेंट और टेंडन को ठीक करने के लिए किया जाता है। 
  6. रिलीज सर्जरी: इस प्रक्रिया को ‘कार्पल टनल सिंड्रोम’ की समस्या होने पर किया जाता है।

ऑर्थोपेडिक सर्जन

ऑर्थोपेडिस्ट मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम जैसे घुटने, जोड़ों, जांघ की हड्डी में आए डैमेज का उपचार करने के साथ - साथ जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी करता है। ऑर्थोपेडिक सर्जन को हड्डियों और मांसपेशियों से जुड़े उपचार और सर्जरी में विशेषज्ञता हासिल होती है। 

ऑर्थोपेडिक सर्जन  कैसे बनते हैं

ऑर्थोपेडिक डॉक्टर बनने के लिए दसवीं के बाद से ही अच्छी शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती है। ऑर्थोपेडिक डॉक्टर बनने की यात्रा कुछ इस प्रकार है: 
  1. १०+२ में जीव विज्ञान विषय को मुख्य विषय के रूप में पढ़ना होता है। 
  2. कक्षा १२वीं के दौरान या बाद में नीट ( नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) की परीक्षा पास करनी होती है। 
  3. नीट में अच्छे अंक लाने के बाद किसी प्रतिष्ठित या मान्यता प्राप्त चिकित्सा कॉलेज से ४ से ५ साल तक एमबीबीएस ( बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी )  करना होता है। 
  4. एमबीबीएस के बाद नीट पीजी की परीक्षा पास करनी होती है। 
  5. नीट पीजी की परीक्षा के अंकों के आधार पर मान्यता प्राप्त विश्विद्यालय से एमडी ( डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन ) करना होता है। 
  6. इसके बाद किसी भी प्राइवेट या सरकारी हॉस्पिटल में चिकित्सक के रूप में काम कर सकते हैं।

ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास कब जाएं

निम्नलिखित समस्याएं होने पर ऑर्थोपेडिक डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए: 
  1. हड्डी में दर्द और सूजन होने पर या मांशपेशियों में लगातार दर्द होने पर 
  2. जोड़ों में गतिशीलता की कमी होने पर 
  3. नर्व यानी तंत्रिका से जुड़ी कोई समस्या होने पर जैसे पैरों या कंधों में झुनझुनी होना।
  4. हड्डियों या जोड़ों में चोट लगने पर या फ्रैक्चर होने पर।

सारांश

इस आर्टिकल में हमने समझा कि ऑर्थोपेडिक के अंतर्गत मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम में आई किसी भी प्रकार के विकार का उपचार और जरूरत पड़ने पर सर्जरी की जाती है। ऑर्थोपेडिक में सर्जिकल और नॉन सर्जिकल दोनों ही तरीकों का प्रयोग किया जाता है। हड्डी में, जोड़ों में, मंशपेशी में और नर्व से जुड़ी कोई भी खराबी आती है तो ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के पास जाकर उपचार लेना चाहिए। 
हेक्साहेल्थ आपकी सर्जरी को सुविधाजनक बनाने में पूरी मदद करता है। हेक्साहेल्थ पर अनुभवी ऑर्थोपेडिक सर्जन उपलब्ध हैं जो सर्जरी की प्रक्रिया को आसान और सहज बनाते हैं। आप जब चाहें एक्सपर्ट सर्जन से ऑडियो या वीडियो कॉल पर बात कर सकते हैं। इसके अलावा हेक्साहेल्थ की प्रशिक्षित टीम आपके दौड़ - भाग को कम करती है और सर्जरी से रिकवर होने तक आपका ध्यान रखती है। हेक्साहेल्थ पर १५००+ डॉक्टर और ५०० से अधिक हॉस्पिटल उपलब्ध हैं जो सरकार द्वारा प्रमाणित हैं।

अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल

ऑर्थोपेडिक ग्रीक के शब्दों ‘ऑर्थोस’ और ‘पैडिया’ से मिलकर बना है। ‘ऑर्थोस’ का अर्थ  होता है ‘सीधा और सही’ और ‘पैडिया’ का अर्थ होता है बच्चों का पालन पोषण यानी बच्चों के हड्डी में चोट आने पर दिए जाने वाले उपचार। आधुनिक विज्ञान के अनुसार ‘आर्थोपेडिक’ सर्जरी की वह शाखा है जो हड्डी या मांशपेशियों में आई दिक्कतों को ठीक करता है।
आर्थोपेडिक डॉक्टर को ऑर्थोपेडिस्ट कहा जाता है। ऑर्थोपेडिस्ट दो तरह के होते हैं। ऑर्थोपेडिस्ट निदान और उपचार के अलावा जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी करते हैं। ऐसे ऑर्थोपेडिस्ट को ऑर्थोपेडिक सर्जन भी कहा जाता है। 
 
ऑर्थोपेडिक सर्जन बनने के लिए हाई स्कूल से लेकर सर्जन बनने तक आपको कम से कम १० से १२ साल की शिक्षा की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा ऑर्थोपेडिक सर्जन बनने के बाद अनुभव आने में भी कम से कम १ से २ साल का समय लगता है। 
 
भारत में ऑर्थोपेडिक सर्जन बनने के चरण इस प्रकार है: 
  1. नीट ( नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट ) की परीक्षा देकर ४ से ५ साल एमबीबीएस की पढ़ाई करनी होती है। 
  2. इसके बाद ऑर्थोपेडिक सर्जरी में मास्टर करना पड़ता है जो ३ साल का होता है। जो लोग किसी प्रतिष्ठित चिकित्सा स्कूल से डिप्लोमा करते हैं उन्हें २ साल लगते हैं। 
  3. अब आप किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में एक आर्थोपेडिक सर्जन के रूप में काम कर सकते हैं।
आर्थोस्कोपिक सर्जरी एक प्रकार से आर्थोपेडिक सर्जरी ही है जिसमे ओपन सर्जरी की तुलना में कम से कम सर्जरी (चीर - फाड़) की जाती है इसलिए सर्जरी के बाद जटिलताएं कम होती हैं। आर्थोस्कोपिक सर्जरी में सूक्ष्म कैमरा का इस्तेमाल होता है जिससे कंप्यूटर की स्क्रीन पर जोड़ों में लगी चोट या अन्य दिक्कतों का पता लग जाता है। 
 
दूरबीन से घुटने का ऑपरेशन आर्थोस्कोपिक सर्जरी द्वारा की जाती है। ऑर्थोस्कोप नामक एक उपकरण आपके घुटनों में डाला जाता है जिसमे कैमरा लगा होता है। ऑर्थोस्कोप की मदद से आपके घुटने में लगी चोट या डैमेज कंप्यूटर के स्क्रीन पर दिखाई देता है। डॉक्टर इसी के अनुसार ऑपरेशन करते हैं।  
 
लिगामेंट फाइबर से बने होते हैं जो हड्डियों को जोड़ने का काम करते हैं। लिगामेंट में चोट लगने पर इसे ठीक होने में ६ से १२ हफ्ते का समय लग सकता है। लिगामेंट कितने दिन में ठीक होगा यह चोट के स्तर पर निर्भर करता है। अगर गंभीर चोट लगती है तो लिगामेंट को ठीक होने में और भी समय लग सकता है। 
 
घुटने की टोपी को ‘पटेला’ कहते हैं। यह पैर के घुटने में टोपी के आकार जैसी हड्डी होती है। बच्चों में ‘पटेला’ ३ से ६ साल के बीच हड्डी बनने की प्रक्रिया में रहता है। ‘पटेला’ का मुख्य काम घुटने के जोड़ों को सुरक्षा देना है। इसके अलावा यह घुटनों को फैलने और चलने - फिरने में मदद करता है। 
 
आमतौर पर विटामिन डी की कमी से घुटनों में दर्द होता है। घुटनों में दर्द होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे आर्थराइटिस होने से, बढ़ती उम्र के कारण, घुटनों में चोट लगने से, घुटनों पर दबाव पड़ने से और क्वाड्रिसेप्स की मांशपेशियों में कमजोरी आने से घुटनों में दर्द होता है।  
 
लिगामेंट ऑपरेशन में आने वाला खर्च कई कारकों पर निर्भर करता है। शहर, हॉस्पिटल, डॉक्टर का अनुभव और लिगामेंट में आई समस्या के स्तर के आधार पर ऑपरेशन का खर्च अलग - अलग होता है। अगर आप भारत में लिगामेंट ऑपरेशन कराते हैं तो इसकी औसतन लागत १,७२,००० रुपए पड़ती है। लिगामेंट ऑपरेशन में कम से कम ११,००० रुपए और अधिक से अधिक १,७५,००० रूपए लग सकते हैं। 
 
ऑस्टियोआर्थराइटिस एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें जोड़ों के ऊतक समय के साथ लगातार टूटते रहते हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार इसके चार स्तर हो सकते हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस के चौथे चरण में तेज दर्द होने के अलावा हड्डियां नष्ट होने लगती हैं , जोड़ों में रक्तस्राव और इन्फेक्शन हो सकता है, लिगामेंट भी नष्ट होने लगता है, दर्द के कारण रात में ठीक से नींद नहीं आती है।  
 
ऑस्टियोआर्थराइटिस होने पर कुछ लोगों में यह समय के साथ गंभीर हो जाता है जबकि कुछ लोगों में यह बहुत धीरे बढ़ता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस का कोई विशेष इलाज नहीं है लेकिन कुछ दर्द निवारक और अन्य दवाओं के इस्तेमाल से इसके लक्षणों से आराम मिल जाता है। रोज एक्सरसाइज करने और वजन नियंत्रित करके रखने से  ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी स्थिति में मदद मिलती है।  
 
आर्थोपेडिक फिजियोथेरेपी हाड़पिंजर प्रणाली ( मैस्कुलोस्केलेटल सिस्टम ) में हुए किसी भी तरह के विकार ( डिसऑर्डर ) का निदान और उपचार करता है। मैस्कुलोस्केलेटल सिस्टम में हड्डियां, जोड़, मांसपेशियां, लिगामेंट और टेंडन शामिल होते हैं। शरीर के इन भागों में कुछ भी समस्या होती है तो आर्थोपेडिक फिजियोथेरेपी की मदद ली जाती है।

Last Updated on: 7 January 2023

Disclaimer: यहाँ दी गई जानकारी केवल शैक्षणिक और सीखने के उद्देश्य से है। यह हर चिकित्सा स्थिति को कवर नहीं करती है और आपकी व्यक्तिगत स्थिति का विकल्प नहीं हो सकती है। यह जानकारी चिकित्सा सलाह नहीं है, किसी भी स्थिति का निदान करने के लिए नहीं है, और इसे किसी प्रमाणित चिकित्सा या स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से बात करने का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

समीक्षक

Dr. Aman Priya Khanna

Dr. Aman Priya Khanna

MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES

12 Years Experience

Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More

लेखक

Sangeeta Sharma

Sangeeta Sharma

BSc. Biochemistry I MSc. Biochemistry (Oxford College Bangalore)

6 Years Experience

She has extensive experience in content and regulatory writing with reputed organisations like Sun Pharmaceuticals and Innodata. Skilled in SEO and passionate about creating informative and engaging medical conten...View More

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