Test Duration
10 Minutes
------ To ------15 Minutes
Test Cost
₹ 1,000
------ To ------₹ 4,000
अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर हर मां चिंतित रहती है। गर्भावस्था के दौरान बच्चे के स्वास्थ्य की जांच के लिए डॉक्टर्स कुछ परिक्षण कराने की सलाह देते हैं। परिक्षण के माध्यम से अनुवांशिक बीमारियों के बारे में जानकारी मिलती है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) या फिर मैटरनल सीरम स्क्रीनिंग टेस्ट एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है। गर्भावस्था में डबल मार्कर टेस्ट की आवश्यकता, पूर्वापेक्षाएँ, प्रक्रिया आदि के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ते आगे रहें।
वैकल्पिक नाम |
मातृ सीरम स्क्रीनिंग, पहली तिमाही स्क्रीनिंग |
आवश्यकताएं |
उपवास की आवश्यकता नहीं |
परीक्षण कौन करता है |
सामान्य चिकित्सक |
पैरामीटर |
बीटा-एचसीजी, प्लाज्मा प्रोटीन पीएपीपी-ए |
रिपोर्ट करने का समय |
३ से ७ दिन |
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गर्भावस्था की पहली तिमाही में डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in pregnancy hindi) ) की मदद से प्रेगनेंट महिलाओं के अजन्में बच्चे में संभावित अनुवांशिक बीमारियों का पता लगाया जाता है।
प्रेगनेंसी में डबल मार्कर टेस्ट अजन्मे बच्चे के डाउन सिंड्रोम (ट्राइसॉमी २१), एडवर्ड सिंड्रोम (ट्राइसॉमी १२) या न्यूरल ट्यूब दोष होने की संभावना को निर्धारित करने में मदद करता है।
डॉक्टर अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह भी दे सकते हैं। ९ से १३ सप्ताह के गर्भ के दौरान डबल मार्कर टेस्ट के लिए रक्त परीक्षण किया जाता है। वहीं ११ से १३ सप्ताह के बीच अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
प्रेगनेंसी में डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in pregnancy hindi) अनुवांशिक स्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है। क्रोमोसोम की प्रतियों में गड़बड़ी के कारण कुछ स्थितियां पैदा हो जाती हैं।
प्रेगनेंसी में डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) की मदद से भावी माता-पिता को निर्णय लेने में सहायता मिलती है। इसके फायदे निम्नप्रकार के हो सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान यदि पता चलता है कि होने वाले बच्चे को डाउन सिंड्रोम हैं, तो मां अपनी गर्भावस्था को समाप्त कर सकती है।
अधिक उम्र (३५ वर्ष से ज्यादा) में स्वस्थ्य प्रेगनेंसी की जानकारी देने में ये परिक्षण अहम भूमिका निभाता है।
अजन्मे बच्चे की मानसिक और शारीरिक चुनौतियों के बारे में जानकारी मिलती है।
परिक्षण से पहले किसी भी तरह की तैयारी की जरूरत नहीं होती है। रक्त परिक्षण कुछ ही समय में हो जाता है। डॉक्टर से रक्त परिक्षण और अल्ट्रासाउंड के संबंध में जरूर पूछना चाहिए।
प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर की सलाह पर डबल मार्कर टेस्ट कराया जा सकता है। कुछ महिलाओं के बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने का ज्यादा जोखिम होता है। अजन्मे बच्चे को डाउन सिंड्रोम जोखिम होने का खतरा निम्न कारणों से बढ़ सकता है।
अगर किसी के परिवार में पहले से डाउन सिंड्रोम की अनुवांशिक बीमारी है तो भविष्य में जन्म लेने वाले बच्चे पर भी इसका असर पड़ सकता है।
महिला पहले भी डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चे को जन्म दे चुकी है तो डॉक्टर बीमारी की संभावन को जांचने के लिए डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) कराने की सलाह देते है।
अधिक उम्र में मां बनने पर होने वाले बच्चे को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अगर गर्भवती महिला की उम्र ३५ से ज्यादा हो चुकी है, तो उसके बच्चे को डाउन सिंड्रोम का खतरा बढ़ सकता है।
अजन्मे बच्चे का डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) होना चाहिए या नहीं, इस बारे में अनुवांशिक परामर्शदाता से भी अधिक जानकारी ली जा सकती है।
डबल मार्कर टेस्ट को करने पर आमतौर पर ५ मिनट से भी कम समय लगता है। प्रेगनेंसी में डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) के दौरान रक्त का नमूना लिया जाता है। डबल मार्कर टेस्ट (double marker test kaise hota hai) के दौरान निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है।
रक्त परीक्षण करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले हाथ में टूर्निकेट बांधते हैं ताकि नस को आसानी से ढूंढा जा सके।
अब एक छोटी सुई का इस्तेमाल कर बांह की नस में लगाया जाता है और रक्त का सैंपल लिया जाता है।
सुई डालने के थोड़ी देर बाद रक्त का नमूना ले लिया जाता है और ट्यूब में एकत्रित कर लिया जाता है।
सुई अंदर जाने पर और बाहर निकालने पर हल्की सी चुभन महसूस हो सकती है।
प्रेगनेंसी में डबल मार्कर टेस्ट क्या होता है (double marker test kya hota hai) और कैसे किया जाता है, इस जानकारी के बाद इसके परिणाम भी महत्वपूर्ण होता है।
सरल देखभाल के चरणों को समझने से आपको आराम से ठीक होने में मदद मिल सकती है और आपके डबल मार्कर परीक्षण से सटीक परिणाम सुनिश्चित हो सकते हैं।
डबल मार्कर टेस्ट के दौरान गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन (PAPP-A) और फ्री बीटा मानव कोरियोनिक गोनाडोट्रॉफिन (βhCG) की जांच की जाती है।[३] इस टेस्ट की मदद स्वास्थ्य स्थितियों का निदान नहीं किया जा सकता है। टेस्ट के माध्यम से उन महिलाओं की पहचान जरूर की जा सकती है, जो उच्च जोखिम में हो।
डबल मार्कर टेस्ट में ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड शामिल होता है। इस टेस्ट में निम्न स्तर की माप की जाती है।
डबल मार्कर टेस्ट में बीटा-ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (बीटा-एचसीजी) को मापा जाता है।
रक्त में मौजूद प्लाज्मा प्रोटीन पीएपीपी-ए की जांच की जाती है।
परिणाम की मदद से अजन्मे बच्चे से संबंधित कम, मध्यम या उच्च जोखिम वाली असामान्यताओं का पता चलता है।
सकारात्मक टेस्ट रिपोर्ट से मतलब है कि बच्चे के डाउन सिंड्रोम होने की संभावना औसत से अधिक है।
परीक्षण के परिणामों में एक संख्या शामिल हो सकती है जो बताती है कि जोखिम कितना अधिक है। संख्या अनुपात में दी जाती है जैसे कि १:१० से १:२५० के बीच अनुपात सकारात्मक माना जाता है।
यदि परिक्षण में अनुपात १:१००० आया है, तो परिणाम नकारात्मक माना जाता है।
सकारात्मक परिणाम आने के बाद भी मां एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दे सकती है|
जांच के नकारात्मक परिणाम से मतलब है कि बच्चे को डाउन सिंड्रोम होने की संभावना नहीं है। लेकिन स्क्रीनिंग टेस्ट इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि आपके शिशु को डाउन सिंड्रोम नहीं होगा।[२]
स्क्रीनिंग परिक्षण बीमारी का निदान नहीं करते हैं। डॉक्टर नैदानिक परिक्षण कराने की सलाह दे सकते हैं। डायग्नोस्टिक टेस्ट आमतौर पर आपको बता सकते हैं कि आपके बच्चे को डाउन सिंड्रोम होगा या नहीं। परिणाम आने के बाद स्थिति को बेहतर तरीके से समझने के लिए जेनेटिक काउंसलर से बात जरूर करनी चाहिए।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) साथ ही अन्य टेस्ट भी किए जा सकते हैं। डाउन सिंड्रोम के निदान के लिए निम्नलिखित टेस्ट कराने की सलाह दी जा सकती है।
पहली तिमाही का अल्ट्रासाउंड- इस दौरान डॉक्टर पेट में अल्ट्रासाउंड डिवाइस को घुमाते हैं। ध्वनि तरंगों का उपयोग अजन्मे बच्चे की छवि बनाने के लिए किया जाता है।
एमनियोसेंटेसिस- ये गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला एक परीक्षण है। एमनियोसेंटेसिस के दौरान, मॉनिटर पर गर्भाशय में बच्चे की स्थिति दिखाने के लिए एक अल्ट्रासाउंड छड़ी (ट्रांसड्यूसर) का उपयोग किया जाता है। फिर एमनियोटिक द्रव का एक नमूना, जिसमें भ्रूण कोशिकाएं और बच्चे द्वारा उत्पादित रसायन होते हैं, परीक्षण के लिए लिया जाता है।
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग- डॉक्टर पेट से डाली गई सुई से या योनि के माध्यम से डाली गई ट्यूब के माध्यम से प्लेसेंटा से ऊतक का एक नमूना एकत्र करते हैं।
पर्क्यूटेनियस गर्भनाल रक्त नमूनाकरण- पेट के माध्यम से और गर्भाशय में गर्भनाल में एक खोखली सुई डाली जाती है। गर्भनाल की एक नस से रक्त का नमूना लिया जाता है।
डबल मार्कर टेस्ट आसानी से होने वाला परिक्षण है। इस परिक्षण के दौरान ज्यादा समय नहीं लगता है। इससे जुड़े जोखिम के बारे में जानकारी अवश्य होनी चाहिए।
एमनियोसेंटेसिस या सीवीएस परिक्षण के दौरान महिला को हल्की चुभन या ऐंठन महसूस हो सकती है। साथ ही कुछ हद तक गर्भपात का खतरा भी रहता है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) एक ब्लड टेस्ट है। टेस्ट की कीमत स्थान और प्रयोगशाला के अनुसार भिन्न हो सकती है।
डबल मार्कर टेस्ट की कीमत १००० रु से शुरू होती है। टेस्ट की कीमत ४००० रु तक हो सकती है।
यदि ब्लड सैंपल के साथ अन्य टेस्ट किया जा रहा है, तो टेस्ट की कीमत अधिक बढ़ सकती है।
विभिन्न प्रयोगशालाओं में टेस्ट की कीमत को कुछ कारक या फैक्टर्स प्रभावित कर सकते हैं।
१. प्रयोगशाला का प्रकार: परिक्षण की कीमत प्रयोगशाला के स्थान और प्रकार से प्रभावित हो सकती है। निजी प्रयोगशाला में परिक्षण की कीमत सरकारी प्रयोगशाला की अपेक्षा अधिक होती हैं।
२. स्वास्थ्य रखरखाव संगठन: बेहतर स्वास्थ्य रखरखाव संगठन लैब में होने वाले परिक्षणों की कीमत बदल सकता है। प्रयोगशाला में परिक्षण की कीमत स्वास्थ्य रखरखाव संगठन और शुल्क सेवा प्रणाली पर भी निर्भर करती है।
३. प्रयोगशाला उद्योग का नियमन: प्रयोगशाला सेटिंग्स में श्रमिकों और शोधकर्ताओं का स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी बेहतर व्यवस्था प्रयोगशाला में परिक्षण की कीमत प्रभावित करती है।
४. रोगी का बीमा कवरेज: बीमा कवरेज की मदद से मरीज को अस्पताल के कई खर्चों से राहत मिलती है। अगर रोगी ने पहले से बीमा कवरेज करवाया है, तो टेस्ट की कीमत में अंतर आ सकता है।
टेस्ट | कीमत |
डबल मार्कर टेस्ट | ₹ १,००० - ₹ ४,००० |
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) से संबंधित कई मिथक है।कुछ मिथक और उनके तथ्य निम्निलिखत है।
मिथक: डबल मार्कर टेस्ट का सकारात्म परिणाम सटीक होता है।
तथ्य: डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) का परिणाम सटीक नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये परिक्षण बीमारी की संभावना को बताता है। बीमारी के निदान के लिए अन्य टेस्ट करने पड़ते हैं।
मिथक: डबल मार्कर टेस्ट जोखिम से भरा है।
तथ्य: डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) एक रक्त परिक्षण है। ये जोखिम से भरा नहीं होता है।
हर महिला यह चाहती है कि उसका होने वाला बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हो। यदि समय पर स्क्रीनिंग परिक्षण कराया जाएं तो होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिल जाती है। ऐसे में डॉक्टर होने वाले माता-पिता को बेहतर सलाह दे सकते हैं। डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) कराने की जिम्मेदारी पूरी तरह से माता-पिता की होती है। डॉक्टर से डबल मार्कर टेस्ट(double marker test in hindi) के बारे में अधिक जानकारी जरूर प्राप्त करनी चाहिए। परिक्षण के परिणामों और सावधानियों के बारे में डॉक्टर से विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।
अगर आप प्रेगनेंट हैं और आने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर परेशान हैं तो आपको बेझिझक HexaHealth के विशेषज्ञ डॉक्टर से ऑनलाइन या ऑफलाइन सलाह लेनी चाहिए। कई बार मन में ये प्रश्न आ सकता है कि डबल मार्कर टेस्ट होने वाले बच्चे के लिए सुरक्षित रहेगा या नहीं? अगर आपके मन में भी ये प्रश्न है तो आप हमारी टीम से संपर्क कर सभी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। हम आपको प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले सभी महत्वपूर्ण परिक्षणों की जानकारी देंगे।
MCH Blood Test in Hindi | HCT Blood Test in Hindi |
CBC Test in Hindi | CA 125 Test in Hindi |
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प्रेगनेंसी में डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) की मदद से होने वाले बच्चे या फिर अजन्मे बच्चे डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड सिंड्रोम या न्यूरल ट्यूब दोष के बारे में जानकारी मिलती है। डबल मार्कर टेस्ट प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में किया जाता है।
गर्भावस्था के पहले १४ हफ्तों के लिए दो रक्त मार्करों का दोहरा परीक्षण किया जाता है।डबल मार्कर टेस्ट के दौरान गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन (PAPP-A) और मुक्त बीटा मानव कोरियोनिक गोनाडोट्रॉफिन (βhCG) की जांच की जाती है।
रिपोर्ट में एक अंक अनुपात में दिया जाता है। १:१० से १:२५० के बीच अनुपात सकारात्मक माना जाता है। वहीं ये अनुपात जब १:१००० आता है तो रिपोर्ट नकारात्मक हो जाती है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) अनुवांशिक बीमारी की संभावना बताता है। यदि डबल मार्कर टेस्ट का परिणाम सामान्य है, तो शिशु के स्वस्थ्य होने की जानकारी मिल जाती है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है। टेस्ट पांच से कम मिनट में हो जाता है। टेस्ट करने के लिए ब्लड सैंपल की जरूरत होती है। निम्न प्रकार से ब्लड सैंपल लिया जाता है।
डॉक्टर महिला की बांह में नस को ढूढ़ते हैं।
अब रक्त का नमूना लेने के लिए सुई या इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं।
इंजेक्शन लगाने और हटाने पर हल्का दर्द महसूस हो सकता है।
अब रक्त को शीशी में भरभर जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया जाता है।
प्रेगनेंसी में डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) की प्रक्रिया आसान होती है। इस दौरान रक्त नमूना लिया जाता है।
डॉक्टर ब्लड टेस्ट का रिजल्ट आने के बाद पेशेंट को रिजल्ट संबंधी जानकारी दी जाती है। बीमारी के निदान के लिए डॉक्टर अन्य टेस्ट की भी सलाह दे सकते हैं।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) के बाद महिला को उच्च जोखिम होता है, तो एमनियोसेंटेसिस या सीवीएस परिक्षण किया जाता है। इस परिक्षण में गर्भपात होने का थोड़ा सा जोखिम होता है। 'उच्च जोखिम' स्क्रीनिंग परीक्षा परिणाम के बाद एमनियोसेंटेसिस या सीवीएस कराना है या नहीं, माता-पिता इसका निर्णय ले सकते हैं।
रक्त परीक्षण दर्दनाक नहीं होता है। महिला को सुई लगने पर हल्का दर्द महसूस हो सकता है। वहीं निदान के लिए किए जाने वाले टेस्ट एमनियोसेंटेसिस या सीवीएस परिक्षण के दौरान महिला को हल्की चुभन या ऐंठन महसूस हो सकती है।
रक्त परीक्षण दर्दनाक नहीं होता है। महिला को सुई लगने पर हल्का दर्द महसूस हो सकता है। वहीं निदान के लिए किए जाने वाले टेस्ट एमनियोसेंटेसिस या सीवीएस परिक्षण के दौरान महिला को हल्की चुभन या ऐंठन महसूस हो सकती है।
रक्त परीक्षण दर्दनाक नहीं होता है। महिला को सुई लगने पर हल्का दर्द महसूस हो सकता है। वहीं निदान के लिए किए जाने वाले टेस्ट एमनियोसेंटेसिस या सीवीएस परिक्षण के दौरान महिला को हल्की चुभन या ऐंठन महसूस हो सकती है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) के नतीजे या परिणामों को आने में एक दिन या तीन दिन का समय लग सकता है। इस संबंध में डॉक्टर से अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
डबल मार्कर टेस्ट की रिपोर्ट इमेज आने पर डॉक्टर से बात करनी चाहिए। डॉक्टर से परामर्श के बाद रिपोर्ट इमेज देखी जा सकती है। साथ ही रिपोर्ट से संबंधित सवाल भी पूछे जा सकते हैं।
सकारात्मक परिणाम के लिए डॉक्टर अक्सर कटऑफ के रूप में एक निश्चित संख्या का उपयोग करते हैं। डॉक्टर कह सकते हैं कि कटऑफ २00 में से १ है। इसका मतलब है कि अजन्मा बच्चा अनुवांशिक बीमारी के उच्चे जोखिम में शामिल है। अगर कटऑफ ३00 में से १ है, तो इसे सामान्य मान कहा जाएगा।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) परिणाम असामान्य या पॉजिटिव आने से मतलब है कि अजन्मे बच्चे को डाउन सिंड्रोम होने की संभावना औसत से अधिक है। असामान्य परिणाम वाली लगभग ५0 महिलाओं में से केवल एक की प्रेगनेंसी प्रभावित होती है।
यदि किसी महिला के परिक्षण का परिणाम निगेटिव या नकारात्मक आया है तो इसका मतलब है कि अजन्मे बच्चे को डाउन सिंड्रोम होने की संभावना नहीं है। डबल मार्कर टेस्ट बीमारी का निदान नहीं करता है। स्क्रीनिंग टेस्ट इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि आपके शिशु को डाउन सिंड्रोम नहीं होगा।
असामान्य डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) अजन्मे बच्चे में अनुवांशिक बीमारी होने की संभावना को बढ़ाता है। बच्चे में डाउन सिंड्रोम का कारण मां की अधिक उम्र, डाउन सिंड्रोम का पारिवारिक इतिहास, पहली डाउन सिंड्रोम वाली प्रेग्नेंसी आदि हो सकता है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) किसी भी स्थिति या बीमारी का निदान नहीं करता है। ये टेस्ट केवल अजन्मे बच्चे में अनुवांशिक बीमारी की संभावना के बारे में जानकारी देता है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) स्क्रीनिंग टेस्ट है। टेस्ट का परिणाम अनुवांशिक बीमारी की संभावना के बारे में बताता है। ये सटीक परिणाम नहीं देता है। परिक्षण की मदद से ८० से ९० प्रतिशत तक पहचान दर या सटीकता की जानकारी मिलती है।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) कराने से पहले यदि कोई दवा ली जा रही है, तो इस संबंध में डॉक्टर को बताना चाहिए। डॉक्टर से जानकारी लें कि टेस्ट क परिणाम दवाओं से प्रभावित होते हैं या नहीं।
डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) और क्वाड टेस्ट गर्भावस्था के दौरान अलग-अलग समय में किए जाने वाले रक्त परिक्षण हैं। भ्रूण की असामान्य वृद्धि की जानकारी के लिए दोनों परिक्षण किए जाते हैं।
डबल मार्कर टेस्ट प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में किया जाता है। जबकि डॉक्टर क्वाड मार्कर टेस्ट की सलाह प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में देते हैं। दोनों परिक्षण समान नहीं हैं।
गर्भावस्था के पहले तिमाही में डबल मार्कर टेस्ट (double marker test in hindi) किया जाता है। डबल मार्कर टेस्ट अल्ट्रासाउंड के साथ किया जाता है। गर्भावस्था के दूसरे तिमाही में भी परीक्षण किया जा सकता है।
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